सनातन धर्मं की सबसे बड़ी विशेषता रही कि यहाँ किसी को भी पूर्ण स्वछंदता नहीं अर्थात कोई भी प्रश्न की सीमा से बाहर नहीं है! चाहे घर का स्वामी, चाहे प्रदेश-प्रमुख, या राजा! मंदिर का पुजारी या धर्मपीठ पर आयुक्त आदि शंकराचार्य! यहाँ तक की भगवान् स्वयं!
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सनातन ने कभी भी अपने अनुयायी को भय का ज्ञान नहीं दिया, सनातन का भगवान् डराता नहीं, बल्कि प्रेम की साक्षात मूर्त है! प्रेम को ही भगवान् का रूप कहा गया, भगवान् के लिए जो उपाधियाँ उपयोग में लाई जाती रहीं उनमे करुनानिधान व दयालु इत्यादि सबसे प्रमुख रहीं!
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सनातन का ईश्वर प्रेममय तो है ही, वह कभी अमंगल नहीं करता, यहाँ तक कि मंगल की पराकाष्ठा को ही कहा है ईश्वर:
मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वज|
मंगलम पुण्डरीकाक्षाय मंगलाय तन्नोहरि||
जिसके स्मरण मात्र से ही सब मंगल हो जाता है, उस ईश्वर से भय कैसा?
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सनातन ने हमें ईश्वर के अनेक सुन्दर रूपों में से अपने चित्त के अनुसार अपना इष्ट चुनने की पूरी छूट प्रदान की है! जो मन को भाये, उसी की आराधना करो! शब्द (ॐ ) मन्त्र (गायत्री) पुस्तक (वेद) पत्थर (शालिग्राम) पहाड़ (कैलाश) पेड़ (पीपल) पशु (गाय) मनुष्य (राम)
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सनातन का ईश्वर किसी भी रूप में हो, उसके गुण एक समान रहते हैं, वह कल्याणकारी है, वह सारे जगत का भला करता है और सबका पोषक है; उसमें सब सात्विक गुणों का समावेश है; धर्म के दस लक्ष्ण मूर्तिमान हैं! जब भी कोई भक्त कहीं अर्चना करता है तो इसी धर्मस्वरूप को!
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सनातन का भगवान् कभी भी अन्याय नहीं करता, क्रोधित नहीं होता, अपनी इच्छा अपने अनुयायी पर नहीं थोपता; बल्कि मनुष्य को निज नियति पर पूरा अधिकार दिया है! कर्मचक्र के आधार पर ही सबकुछ पायोगे, स्वयं अपना भविष्य लिखो! ईश्वर व उसकी कथाएं केवल प्रेरणास्रोत हैं!
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सनातन के अतिरिक्त जो भी धर्म प्रचलित हैं, उनका ईश्वर पहुँच से परे है, उसे एक ऐसी सत्ता माना गया है जिससे सबको भय होना चाहिए, जिसको प्रभु नहीं माना तो नर्क में डाल देगा, जीवन को दुःख से भर देगा, अतः उसका अनुसरण करो, बिना प्रश्न पूछे, बिना तर्क किये!
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जिन धर्मों में प्रश्न पूछने तक का अधिकार नहीं, उनको आधुनिक कह सर्वोत्तम घोषित किया करते हैं उनके प्रचारक! और जो धर्म सदा प्रश्नों का, तर्क का स्वागत करता है; जो अपने भगवान् को भी उत्तरदायी मानता है, उस धर्म को अन्धविश्वासी बताने का सहस किया करते हैं!
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सत्य यह कि यदि इस संसार में कोई धर्म है जो मानववादी है, समदृष्टि है, सबका सम्मान करता है, नास्तिक व आस्तिक सभी जिसकी गोद में समा जाते हैं, तो केवल सनातन हिन्दू धर्म! अन्य किसी को धर्म कहना अतिश्योक्ति है, वे धर्म नहीं साम्राज्यवाद के साधन मात्र हैं!
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जहां भी मनुष्य इन दस लक्षणों का पालन करते हैं, वहीँ सनातन भी वास करता है:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
धैर्य, क्षमा, नियम, अचौर्य, स्वच्छता, संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य व अक्रोध!
ॐ तत्सत!
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