हिंदु नववर्ष की गणना विक्रमी सम्वत् से है। २०८५ यानिकि ईसा से ५७ वर्ष पूर्व भारत सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के द्वारा यह सम्वत् लागू किया गया। स्मरण कहे कि सम्वत् चलाने का सामर्थ्य वही रखते हैं जिनके पास राजनैतिक सत्ता के साथ साथ प्रजा का प्रेम भी हो।
#विक्रमीसंवत
गुप्त साम्राज्य का वह समय भारत का स्वर्णिम युग भी कहा है। चन्द्रगुप्त द्वितीय राजा समुद्रगुप्त महान के पुत्र थे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही शक आक्रमणकारियों के विरुद्ध विजय। और आगे चल कर एक ऐसे राज्य का संचालन जिसकी समृद्धि का उल्लेख चीनी इतिहासकारों ने भी किया!
#विक्रमीसंवत
उनका राज्य सम्पूर्ण आर्यवर्त में फैला था। शासन ऐसा प्रभावशाली कि विद्या कला साहित्य सभी चर्म पर थे। प्रजागण सभ्य थे; धनी थे, राज्य शांत व सीमायें सुरक्षित। हर घर महल, हर नुक्कड़ मंदिर, हर गली राजमार्ग हर नागरिक शिक्षित। ऐसे राजा के नाम सिक्के चालू हुये और सम्वत् भी।
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किंतु पिता का राज्य उन्हें स्वत: नहीं प्राप्त हुया; अत्यंत कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होने बाद ही उनको इस गौरवशाली पद का अधिकार मिला था। क्या थी वह कहानी; जानिये इस कविता के माध्यम से।
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#भारत_का_स्वर्णिम_इतिहास
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इस घटनाक्रम के उपरांत ही चंद्र को भारत के सिंहासन का अधिकार प्राप्त हुया!
वंदे माँ भारती!
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