कर्नाटका के लोग बहुत ही स्वाभिमानी हैं, विशेषकर महानगरों के लोग और प्रवासी कन्नडिगा। हिंदी मे हम इस प्रदेश को कर्नाटक के नाम से पुकारते है परंतु ऐसे विदेशी कन्नड़ बंधु दोनों बातों पर आपत्ति उठा सकते है- पहली, कि हिंदी वाले उनके राज्य का नाम पुकारते ही क्यों हैं?
दूसरी ये कि पुकारते हैं तो आख़िर का आ क्यों खा जाते हैं। ऐसा नहीं है कि विंध्याचल के इस पार से आने वाली आवाज़ से इन्हें कष्ट है, कष्ट वही है जो यहाँ के प्रबुद्ध, प्रवासी अर्थशास्त्रियों को है। जब दक्षिण वासी आपको रामा, लक्ष्मणा, भरत.. छोड़िये, इसको जाने दीजिये।
मुद्दा ये है कि जब कर्नाटक आपको इतने सारे आ की मात्रा वाले शब्द देता है तो आप क्या इसके नाम का अ चुरा कर ख़ज़ाना भर लेते हैं। यही टैक्स के संदर्भ मे होता है, गर्वित कन्नडिगा बताते हैं। छत्तीसगढ़ वाले चावल भेजते हैं, नक्सल से परेशान हैं, तो क्या इसका दोष है।
जो भी हो, ऐसे व्यक्ति अभूतपूर्व पावित्र्य से भरे होते है, चाहे महाराष्ट्र हो, कर्नाटक या तमिलनाडु। अपनी राज्य सीमा के बाहर की प्रत्येक भाषा को ये विदेशी समझते हैं और विंध्य के पार की भाषा के दर्शन मात्र से इनका धर्म भ्रष्ट हो जाता है, आत्मा आँदोलित हो जाती है।
इनका विशेष स्नेह हिंदी की ओर रहा है। उर्दू और अँग्रेजी यहाँ सर्वदा सर्वप्रिय रही है। राजनीति का दीपक सत्ता की छत पर हृदयों के मध्य खिंची दीवारों पर चढ़ कर किया जाता है। भाषा इस महान कार्य मे सदैव उपयोगी रही है।
चुनाव आते ही विराट सनातन की परिकल्पना गढ़ने वाले प्रांतीय गौरव के नाम पर बारात मे आए फूफाजी बन कर अलग खड़े हो जाते है। गाँव देहात का आदमी सड़क, बिजली, पानी और आज के अवसर मे सांस्कृतिक पहचान पर मत देने की मन बनाता है।
किंतु ये महामना तुच्छ मानवीय सरोकार से ऊपर उठ कर ‘एक राष्ट्र, श्रेष्ठ राष्ट्र’ जैसे नारे का विरोध करते है। अचानक इन्हें इटली से आयातित नेतृत्व मे साँभर की सोंधी ख़ुशबू आने लगती है। इनका फ़ैन क्लब इन्हें कुछ बताता है और ये उसे कुछ।
ये अचानक लिबरल इतिहासकार बन जाते है और वाह-वाह के बीच चेलों को बताते है कि विंध्य के पार सब हिंदी भाषी नार्थी होते है, और बड़े शातिर होते हैं। बरसो पहले एक उत्तरभारतीय की पत्नी का पता करने को, एक विदेशी का घर जलाने को एक कर्नाटका वासी ने अपनी पूँछ जला ली थी, सावधान, यह फिर न हो!
इनके चेले प्राय: वही लोग होते है जो दिन के बारह बजे, बरमूडा पहन कर दूध ब्रेड ख़रीदते देखे जाते हैं । यही वे लोग हैं जिन्हें अपनी आने वाली पीढ़ी को ध्यान मे रख कर वोट देने को कहा जाता है तो ये इंस्टाग्राम पर जस्टिन बीबर को वोट दे कर अपने नागरिक कर्तव्य की पूर्ति करते हैं।
ये वही व्यक्ति हैं जो पिज़्ज़ा लेते हुए सौ रूपये की टिप छोड़ते है और सब्ज़ी वाले से मुफ़्त धनिया के लिए लड़ते देखे जाते है। ये ट्रंप के अमरीकी जातिभेद से चिंतित होते है, और कर्नाटक मे उत्तर बनाम दक्षिण पर मतदान उचित मानते है।
इन्हें नोटा क्रांतिकारी लगता है क्योंकि उसका विस्तार अँग्रेजी मे होता है। टीवी पत्रकार, जो चुनाव की टोह लेने राज्य पहुँचते हैं, ऐसे ही लोगों से रेस्तराँ मे नाश्ता करते हुए राजनैतिक अनुमान लगाते हैं। कुल मिला कर अनुमान इस पर निर्भर करती है कि नाश्ते की प्लेट मे क्या आता है
चुनाव के दिन ऐसे महान व्यक्तित्व लाँग ड्राईव पर उड़ान थाम लेते हैं, इनर बुद्धा की तलाश मे। नाश्ता-विहीन व्यक्ति वास्तव मे वोट देता है, और अति उत्साही, परम प्रतापी टीवी एँकर के तमाम अनुमान की दही कर देता है। करता तो वह रसम है किंतु ब्राह्मणवादी रसम को हम दही पुकारेंगे
जिस प्रकार धर्म के अधोपतन की स्थिति मे श्री विष्णु अवतार लेते है, दरबारी पत्रकारों की विश्वसनीयता की रक्षा करने हेतु श्री विष्णु पत्नी लक्ष्मी को मनुष्यलोक मे भेजते हैं। दिग्भ्रमित लोकतंत्र को पुन: प्रतिस्थापित करने को देवि लक्ष्मी स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करती हैं।
इसी धनवर्षा के मध्य लोकतंत्र की नव-ऊषा का उसी प्रकार उदय होता है जिस प्रकार मानसून की प्रथम वर्षा के उपरांत उल्लसित मेँढक का। जैसे प्रेम पाश मे बँधी राजकुमारी का चुंबन एक मेंढक को राजकुमार बना देता है, उसी प्रकार कांग्रेसी चुंबन कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना देता है।
कुमारस्वामी जी का जीवन विरोधीभासो से भरा है। द्वि-भार्या युक्त व्यक्ति का नाम कुमारस्वामी है। जब यह राजा बनाने निकले तो ख़ुद ही राजा बना दिए गए वह भी कुछ इस अदाज मे जैसे बिहार मे पकडऊव्वा विवाह होता है, कि घर से निकले दही लेने और दुल्हन ले कर आ गए।
और जब यह राजा बन गए तो ऐसा जान पड़ता है चपरासी की स्थिति इनसे बेहतर हो गई। ये लोकतांत्रिक सत्ता के अध्यक्ष हैं किंतु ये जनता के नहीं, काँग्रेस के प्रति जवाबदेह हैं; उसी प्रकार जैसे ग़ल्ले पर बिठाया गया लालाजी का नालायक दामाद सिर्फ़ अपने ससुर के प्रति जवाबदेह होता है।
बहरहाल काँग्रेस के हस्तक्षेप के द्वारा लोकतंत्र की रक्षा कर दी गई है। टीवी चैनल की एंकर पुन: अपनी दबंग आवाज़, दुर्घटनीग्रस्त विश्वसनीयता एवं सधे हुए मुक्कों के साथ ट्रोलों का सामना करने को तैयार हैं। प्राऊड कन्नडिगा अपनी मोमबत्तियों के साथ राष्ट्र निर्माण के लिए कटिबद्ध है।
लोकप्रतिनिधि अब काँग्रेस प्रतिनिधि हैं। कर्नाटक मे रामराज्य आ गया है, सोनिया जी की खड़ाऊँ सिंहासन पर रख कर कुमारस्वामी जी राज्य की जनता को अपने शासन से धन्य करने को उपस्थित हैं। भारत के इतिहास मे दूसरी बार ग़ुलाम वंश की सत्ता स्थापित हुई है। 🙏🙏
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#KisanKrantiYatra When the sweet voices @_YogendraYadav comes on TV fishing in troubled water, it is time to sift through some data on Farmers’ crisis story.
Agriculture contributes to 13.7% to the GDP of #India.
Average rate of #Farmer suicide in #India is 13 per 100,000. In Russia it is 18.2, Japan is 20.1, US is 12.6, Australia is 12.5 #KisanKrantiYatra
Farmer suicide in 2016 was 11370. This was 10% less than farming sector deaths in 2014.
सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की बेंच ने “ईन पीन सेफ़्टीपीन” के सार्वभौमिक न्यायिक सिद्धांत का पालन करते हुए प्रात:क़ालिन तात्कालिक बैठक बुलाई और अर्दली को ठँडे समोसे लाने के लिए लताड़ने के पश्चात गणेशोत्सव का प्राथमिकता से संज्ञान लेने का निर्णय लिया। #गणेश_चतुर्थी
गणपति उत्सव का पूना से संबंध को देखते हुए, न्यायाधीश महोदय ने तहसीन पूनावाला को नोटिस भेजा और उनसे जाँच कर के रिपोर्ट करने को कहा गया कि क्या गजानन के मँडपो पर मेनका जी का “नो एलीफ़ेंट वाज़ हर्ट इन मेकांग दिस पंडाल” का बोर्ड लगाया गया है।
इस बीच उन्होंने गणेश जी के गजानन बनने की विषय मे पढ़ा और अपने अर्दली राम खिलावन से कहा कि वो टैरो कार्ड खींच कर इस घटना के दोषी के बारे मे बतलाए। क्या यह शिव का दोष था या पार्वती का या स्वयं गणेश का?
छगनलाल हमारे प्रिय मित्र है। प्रिय माने वैसे जैसे मोदी के शाह, राहुल के मणिशँकर अय्यर, अमरिंदर के सिद्धु, केजरीवाल के अमानतुल्ला खान। हमारा उन पर अपार स्नेह है।
छगनलाल जी क्रांतिकारी विचारों से भरे रहते है। उनके विचार मस्तिष्क से उदर तक ऐसे भरे हैं कि यदि विचार हायड्रोजन होते तो हमारे मित्र ग़ुब्बारे बन कर गगन मे पहुँच चुके होते। मित्र अविवाहित हैं, और ऑफ़िस के सभी विवाहित मित्रों को देख कर उदास होते रहते हैं।
हमने उन्हे कई बार समझाया कि दुखी रहते हुए प्रसन्न दिखने की कला विवाहित पुरूष और मध्य वर्गीय वोटर मे प्रचुर मात्रा मे होती है और इसका उपयोग वे प्रायः कुँवारे व्यक्तियों और राजनैतिक दलो को मूर्ख बनाने मे करते है।
शरद जी रिटायर हो चुके थे। आधार का भय आधारहीन मान कर आधार बनवा चुके थे, और पेंशन प्राप्त कर के भोपाल मे जीवनयापन कर रहे थे। एक बार बिहार जा कर शरद जी नरभसा चुके थे, पुन: नरभसाने का कोई इरादा था नहीं, सो मामाजी के राज में स्वयं को सीमित कर के रखे हुए थे।
इस्लाम आज कल ख़तरे मे नही आता था, संभवत: इमर्जेंसी के बाद से, इस्लाम सबल हो चुका था, और कल निपचती जींस और लोकतंत्र के ख़तरे मे रहने का दौर चल रहा था। न्यू मार्केट के कॉफ़ी हाऊस मे चंद बुद्धिजीवी लोकतंत्र पर आए संकट पर चर्चा कर लेते थे, जोशी जी वहाँ भी नहीं जाते थे।
एक दफे वहाँ के मलियाली वेटर्स को जोशी जी के हिंदी लेखक होने का पता चल गया और उन्होंने जोशीजी को यिंदी यिम्पोजीशन के विरोध मे कॉफ़ी देने से मना कर दिया था। कहाँ शरदजी सरस्वती से ब्रह्मप्रदेश तक लिखना चाहते थे और कहाँ उन्हे बड़े तालाब के उत्तर भाग का लेखक घोषित कर दिया गया था।
ख़िलजी आस पास के रजवाड़ों के लोगों को मारा करता था। रतन सिंह चुप्पी साधे कहे कि कहीं वाशिंगटन पोस्ट उन्हे हिंदू बाईगाट ना कह दे। अखबारो मे आस पास के रजवाड़ों के बारे मे ऊल जलूल लिखा जाता रहा, रतन सिंह कमेटी पर कमेटी बिठाते रहे।
रजवाड़ों मे गोकशी को लेकर बड़ा आक्रोश था। वे उसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने रतन सिंह के पास गए। रतन सिंह देशभक्ति, भाईचारे जैसे कुछ बड़बड़ाते हुए एनडीटीवी को साक्षात्कार देने निकल गए। दूसरे दिन कुछ गोरक्षक पुजारियों की हत्या हो गई।
रजवाड़ों के बार बार परेशान करने पर रतन सिंह ने बरखा दत्त के मधुर स्वर मे धर्मनिरपेक्षता के कैसेट बनवा कर प्रजा मे बँटवाए। प्रजा पर उनके कैसेटों का अभूतपूर्व प्रभाव हुआ। किलो के भाव तलवारें गला कर कीर्तन के लिए करताल बनाए जाने लगे।
#India doesn’t need to earn my affection by being flawless and perfect. Her Every imperfection, every blemish is mine. All her failures are mine. No, I am proud of my India. Never will I question the glory of the land which gave me birth, home and love #IndependenceDayIndia
If her face carries the ugly wounds of the past, I allowed her to suffer under slavery. I failed her as a son. If there is misgovernance, I chose wrong people to rule. If there’s poverty, we must introspect on the leaders we made custodian to the nation for decades.
Every time, she stumbles, I stand apart, brush dust off my clothes and mock her. I laugh at her struggle, mocking - See, so many poor; see so much corruption, see so much dirt and garbage. The world mocks at me. When the mother is belittled, the child loses all respect.