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Aug 22, 2018 19 tweets 4 min read Read on X
#चौधरियों_का_राज

वैसे तो हमारे यहाँ कई टोलियां हैं, लेकिन एक विशेष टोली है चौधरियों की । ये कुछ ख़ास लोग हैं जिनका काम लोगों के झगडे सुलझाना और विवादों को समाप्त करना है ।
इन चौधरियों की बड़ी इज्जत है ।
सत्ता किसी की भी हो पहलवानों की या लंबरदारों की या लंबरदारों के संरक्षण में पंच बने रंगा- बिल्ला की लेकिन चलती केवल चौधरियों की है।
कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में जब अंग्रेजों को लगा कि भारत के लोग तो गंवार हैं।अपने झगडे आपस में लड़ मर के सुलझा लेते हैं।
पंचायत का जो फैसला होता वह झगडे को येन केन प्रकारेण सुलझा ही देता ।
अंग्रेजों ने सोचा कि भाई ऐसे कैसे !
तब उन्होंने पहले कुछ विलायती मीलार्ड बुलवाये और उलझे झगडे सुलगाने की और सुलझे झगडे उलझाने की नई व्यवस्था लागू की ।
अब कानून भी अंग्रेजी में थे और कानून का फैसला करने वाले भी । अंग्रेज मानते थे कि लड़ने वाला खुद अपनी बात कहने में सक्षम नहीं होता तब उसका पक्ष समझाने के लिए उसे अपनी ओर से अपना पक्षधर नियुक्त करना होगा,जो अंग्रेजी जानते हों और उसपर कानून का बघार लगा सकते हों।
ऐसे जन्म हुआ वकीलों का । जो बाद में एफिडेविट से लेकर नोट ऑफ़ क्रेडिट तक बनाने में महारथ पा गए ।अब अंग्रेज हर जगह तो जा नहीं जा सकते थे । फिर दूर दराज के गाँवों में फैसले कौन ले? तब उन्होंने कुछ देशी रईसों, शहजादों और जमींदारों के लड़कों को चुना .
पहले उन्हें ठूंस ठूंस कर अंग्रेज बनाया । फिर मीलार्ड बना दिया, जिनका देशी संस्करण चौधरियों के रूप मे प्रचलित हुआ । लेकिन जो मीलार्ड चौधरी बने वो अंदर से इतने अंग्रेज बने रहे कि सबको सदैव सैंतालीस के पहले का गुलाम ही समझते।
जो भी चौधरी बनता वो अंदर से इतना अंग्रेज होता की उसे दीवाली पर पटाखों, होली पर रंगों, और जन्माष्टमी पर दही हांड़ी से आपत्ति होती । चौधरी लोग देश में जल्लीकट्टू पर प्रतिबन्ध लगा कर इटली में जाकर बुल फाइट देखने का शौक रखते ।
यहाँ तक कि जिस देश में करोडो मामले पड़े हों उस देश में एक मात्र ऐसी टोली है हो हर साल सामूहिक रूप से दो महीने की छुट्टी पर जाती है । गर्मी की छुट्टी लेकर किसी न किसी हिलस्टेशन पर मुन्नी बेगम की आवाज़ में झूम बराबर सुन कर मुकदमों के फैसले जरूर तय कर रहे होते होंगे।
खैर सुविधा है तो मजबूरी में ले रहे हैं वरना इनको कौन सी तमन्ना है अवकाश की । हैं तो इतने कर्मठ कि अगर मामला किसी आतंकवादी का या किसी हिन्दू के खिलाफ हो तो आधी रात को भी मजमा जमा कर बैठ जाते हैं ।
कोई इनपर प्रश्न तो कर नहीं सकता, इसी के बहाने ये महत्त्वपूर्ण मामलों को टरकाना, फैसलों को रोकना और सरकार की फजीहत करना भी बखूबी कर लेते हैं ।
अगर कोई कदम पंचायत उठा भी ले तो ये चौधरी टांग अडा देते और सीधे सादे काम अटका देते ।
पिछले दिनों रिहायशी इलाकों में कुछ जंगली पशु घुस आये, पंचायत ने हाँक कर भगाने का आदेश दे दिया लेकिन कुछ लफंडरों ने कहा नहीं हम तो पालेंगे,चौधरियों से शिकायत कर दी कि मासूम पर जुल्म हो रहा है ।चौधरी अड़ गए।
अब वो जंगली पशु चारों तरफ छुट्टे घूम रहे हैं, और एक चौके चार और चार छक्के चौबीस की गति से बढ़ रहे हैं।ऐसे ही कितने अवसर आये जब पंचायत ने कोई काम किया तो चौधरियों ने अटका दिया।चौधरी लोग पहले तो हर मामले में टांग अड़ा के कहते फैसला हम करेंगे । पंचायत कहती तो करो फैसला ।
चौधरी कहते हाँ करेंगे ।
पंचायत कहती तो करो न अभी करो ।
चौधरी कहते अभी मन नहीं है, जब मन होगा तब करेंगे ।
और बस मामला दब जाता ।
ऐसे ही न जाने कितने मामले चौधरियों की जांघ के नीचे और काँख के नीचे दबे पड़े रहते हैं ।
कुछ मामलों पर तो चौधरी ऐसे बैठते कि जब उठते तो मामले पर उनकी तशरीफ़ के निशान छप जाते । कुछ तो मामले दर्ज करने वाले ही चल बसते या कुछ वो जिनपर मामला चल रहा होता ।
एक बार पंचायत ने कहा चलो जितने पंच चुनकर आये हैं उनके मामले जल्दी निपटा दो जिनको सजा देनी हो दे दो । तो चौधरी बोले , पंच हो पंच रहो, हमारी मर्जी है जब करना होगा तब करेंगे फैसला। पंचो में सुर्खाब के पर लगे है जो उनका फैसला जल्दी कर दें। आराम से होगा । और फिर मामला दब गया।
एक बार पंचायत ने कहा भाई चौधरियों का चुनाव पंचायत करवाएगी,चौधरियों का आपस ने चुन चुन चूं खेलना कुछ ठीक नहीं है, ऐसा लगता है एक ही समूह के कुछ लोग आपस में एक दूसरे को चुनने का खेल खेल रहे हैं । चौधरी भड़क गए, बोले चुनेंगे तो हम ही,और ऐसा लताड़ा कि सारे पंचो के पसीने छूट गए।
पंचायत अगर कानून बना कर कुछ करना भी चाहे तो पहले उसे चौधरियों की चौख़ट पर नाक रगड़ कर जाना होगा।मामला चाहे किसी भूतपूर्व पंच के बेटे का छह लाख करोड़ की संपत्ति का हो या कुद्दा पटेल पर भूरा द्वारा रंग डाल देने से भड़की हुई भावनाओं का ,बिना चौधरियों तक पहुंचे सुलझ नहीं सकता था ।
चौधरियों का मत है कि देश को वो ही चला रहे हैं अतः हर मामला उनके पास लाया जाना चाहिए और जो मामला उनके पास नहीं लाया जाता वो उसका संज्ञान लेते हुए अपने पास लंबित कर देते हैं ।
कुल मिलाकर देश का आधा काम इनके पास लंबित पड़ा हुआ है और जो लंबित नहीं है वो लंबित हो जायेगा ।
मामले का लंबित रहना उसकी गंभीरता को बढ़ाता है ।

लेकिन कई बार गलत फैसलों को भी इन चौधरियों में से कुछ ईमानदारों ने ही लागू होने से बचाया । ये चौधरी ही न्याय की अंतिम सीढ़ी रहे हैं । बस ये अपना विश्वास खो न दें ।

😷😷

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