वैसे तो हमारे यहाँ कई टोलियां हैं, लेकिन एक विशेष टोली है चौधरियों की । ये कुछ ख़ास लोग हैं जिनका काम लोगों के झगडे सुलझाना और विवादों को समाप्त करना है ।
इन चौधरियों की बड़ी इज्जत है ।
सत्ता किसी की भी हो पहलवानों की या लंबरदारों की या लंबरदारों के संरक्षण में पंच बने रंगा- बिल्ला की लेकिन चलती केवल चौधरियों की है।
कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में जब अंग्रेजों को लगा कि भारत के लोग तो गंवार हैं।अपने झगडे आपस में लड़ मर के सुलझा लेते हैं।
पंचायत का जो फैसला होता वह झगडे को येन केन प्रकारेण सुलझा ही देता ।
अंग्रेजों ने सोचा कि भाई ऐसे कैसे !
तब उन्होंने पहले कुछ विलायती मीलार्ड बुलवाये और उलझे झगडे सुलगाने की और सुलझे झगडे उलझाने की नई व्यवस्था लागू की ।
अब कानून भी अंग्रेजी में थे और कानून का फैसला करने वाले भी । अंग्रेज मानते थे कि लड़ने वाला खुद अपनी बात कहने में सक्षम नहीं होता तब उसका पक्ष समझाने के लिए उसे अपनी ओर से अपना पक्षधर नियुक्त करना होगा,जो अंग्रेजी जानते हों और उसपर कानून का बघार लगा सकते हों।
ऐसे जन्म हुआ वकीलों का । जो बाद में एफिडेविट से लेकर नोट ऑफ़ क्रेडिट तक बनाने में महारथ पा गए ।अब अंग्रेज हर जगह तो जा नहीं जा सकते थे । फिर दूर दराज के गाँवों में फैसले कौन ले? तब उन्होंने कुछ देशी रईसों, शहजादों और जमींदारों के लड़कों को चुना .
पहले उन्हें ठूंस ठूंस कर अंग्रेज बनाया । फिर मीलार्ड बना दिया, जिनका देशी संस्करण चौधरियों के रूप मे प्रचलित हुआ । लेकिन जो मीलार्ड चौधरी बने वो अंदर से इतने अंग्रेज बने रहे कि सबको सदैव सैंतालीस के पहले का गुलाम ही समझते।
जो भी चौधरी बनता वो अंदर से इतना अंग्रेज होता की उसे दीवाली पर पटाखों, होली पर रंगों, और जन्माष्टमी पर दही हांड़ी से आपत्ति होती । चौधरी लोग देश में जल्लीकट्टू पर प्रतिबन्ध लगा कर इटली में जाकर बुल फाइट देखने का शौक रखते ।
यहाँ तक कि जिस देश में करोडो मामले पड़े हों उस देश में एक मात्र ऐसी टोली है हो हर साल सामूहिक रूप से दो महीने की छुट्टी पर जाती है । गर्मी की छुट्टी लेकर किसी न किसी हिलस्टेशन पर मुन्नी बेगम की आवाज़ में झूम बराबर सुन कर मुकदमों के फैसले जरूर तय कर रहे होते होंगे।
खैर सुविधा है तो मजबूरी में ले रहे हैं वरना इनको कौन सी तमन्ना है अवकाश की । हैं तो इतने कर्मठ कि अगर मामला किसी आतंकवादी का या किसी हिन्दू के खिलाफ हो तो आधी रात को भी मजमा जमा कर बैठ जाते हैं ।
कोई इनपर प्रश्न तो कर नहीं सकता, इसी के बहाने ये महत्त्वपूर्ण मामलों को टरकाना, फैसलों को रोकना और सरकार की फजीहत करना भी बखूबी कर लेते हैं ।
अगर कोई कदम पंचायत उठा भी ले तो ये चौधरी टांग अडा देते और सीधे सादे काम अटका देते ।
पिछले दिनों रिहायशी इलाकों में कुछ जंगली पशु घुस आये, पंचायत ने हाँक कर भगाने का आदेश दे दिया लेकिन कुछ लफंडरों ने कहा नहीं हम तो पालेंगे,चौधरियों से शिकायत कर दी कि मासूम पर जुल्म हो रहा है ।चौधरी अड़ गए।
अब वो जंगली पशु चारों तरफ छुट्टे घूम रहे हैं, और एक चौके चार और चार छक्के चौबीस की गति से बढ़ रहे हैं।ऐसे ही कितने अवसर आये जब पंचायत ने कोई काम किया तो चौधरियों ने अटका दिया।चौधरी लोग पहले तो हर मामले में टांग अड़ा के कहते फैसला हम करेंगे । पंचायत कहती तो करो फैसला ।
चौधरी कहते हाँ करेंगे ।
पंचायत कहती तो करो न अभी करो ।
चौधरी कहते अभी मन नहीं है, जब मन होगा तब करेंगे ।
और बस मामला दब जाता ।
ऐसे ही न जाने कितने मामले चौधरियों की जांघ के नीचे और काँख के नीचे दबे पड़े रहते हैं ।
कुछ मामलों पर तो चौधरी ऐसे बैठते कि जब उठते तो मामले पर उनकी तशरीफ़ के निशान छप जाते । कुछ तो मामले दर्ज करने वाले ही चल बसते या कुछ वो जिनपर मामला चल रहा होता ।
एक बार पंचायत ने कहा चलो जितने पंच चुनकर आये हैं उनके मामले जल्दी निपटा दो जिनको सजा देनी हो दे दो । तो चौधरी बोले , पंच हो पंच रहो, हमारी मर्जी है जब करना होगा तब करेंगे फैसला। पंचो में सुर्खाब के पर लगे है जो उनका फैसला जल्दी कर दें। आराम से होगा । और फिर मामला दब गया।
एक बार पंचायत ने कहा भाई चौधरियों का चुनाव पंचायत करवाएगी,चौधरियों का आपस ने चुन चुन चूं खेलना कुछ ठीक नहीं है, ऐसा लगता है एक ही समूह के कुछ लोग आपस में एक दूसरे को चुनने का खेल खेल रहे हैं । चौधरी भड़क गए, बोले चुनेंगे तो हम ही,और ऐसा लताड़ा कि सारे पंचो के पसीने छूट गए।
पंचायत अगर कानून बना कर कुछ करना भी चाहे तो पहले उसे चौधरियों की चौख़ट पर नाक रगड़ कर जाना होगा।मामला चाहे किसी भूतपूर्व पंच के बेटे का छह लाख करोड़ की संपत्ति का हो या कुद्दा पटेल पर भूरा द्वारा रंग डाल देने से भड़की हुई भावनाओं का ,बिना चौधरियों तक पहुंचे सुलझ नहीं सकता था ।
चौधरियों का मत है कि देश को वो ही चला रहे हैं अतः हर मामला उनके पास लाया जाना चाहिए और जो मामला उनके पास नहीं लाया जाता वो उसका संज्ञान लेते हुए अपने पास लंबित कर देते हैं ।
कुल मिलाकर देश का आधा काम इनके पास लंबित पड़ा हुआ है और जो लंबित नहीं है वो लंबित हो जायेगा ।
मामले का लंबित रहना उसकी गंभीरता को बढ़ाता है ।
लेकिन कई बार गलत फैसलों को भी इन चौधरियों में से कुछ ईमानदारों ने ही लागू होने से बचाया । ये चौधरी ही न्याय की अंतिम सीढ़ी रहे हैं । बस ये अपना विश्वास खो न दें ।
😷😷
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जब आपके आस पास 18-19 वर्ष के हँसते खेलते बच्चे को हृदयाघात से प्राण गंवाते होते देखते हैं,तब महसूस होता है कुछ गलत अवश्य है।
जब उस बच्चे की मृत्यु का समाचार सुनकर उसी की आयु का उसका मित्र दिवंगत हो जाता है तब बहुत आश्चर्य होता है।
इतनी गहन मित्रता देखने में कम आती है किन्तु इसमें एक चिंता का विषय यह है कि प्रकृति ने हमारी आने वाली पीढ़ी पर भभव डालना शुरू कर दिया है । और हमारी नई पीढ़ी में जीवन की चुनौतियों और दुःख को सहन करने की क्षमता कम होती जा रही है ।
हमारी शिक्षा व्यवस्था आत्मबल विकसित नहीं करती, परिस्थितयों का किस प्रकार सामना करना चाहिए यह भी नहीं बताती । शिक्षा व्यवस्था प्रेशर बनती है और बस एक रेस की तरह सबको उसमे दौड़ा देती है ।
मानसिक रुप से आगामी चुनौतियों के लिए बच्चों को तैयार करना शिक्षा का अंग होना चाहिए ।
मीडियारण्य में एक बार ऋषि पोलक अपने अट्ठासी हज़ार पोलस्टर शिष्यों के साथ एग्जिट-पोल नामक महायज्ञ कर रहे थे| तब एक जिज्ञासु शिष्य ने पोलक ऋषि से प्रश्न किया, हे ऋषि श्रेष्ठ -
यह पोल क्या है और यह किस प्रकार किया जाता है?
पोल के क्या भेद हैं? #ExitPolls #ExitPoll
पोल किसे करना चाहिए और पोल करने से क्या लाभ होता है?
पोल को करने की शास्त्रोक्त विधि क्या है और इसे कब किया जा सकता है?
ऋषि पोलक प्रश्न सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले - हे जिज्ञासु आपने यह उत्तम प्रश्न किया है अतः अब मैं पोल की कथा विस्तारपूर्वक कहता हूँ ।
एक बार भगवन सत्ताधीश अपने आसन पर सुखपूर्वक विराजमान थे । सरकारी तंत्र और परियोजनाओं के कमीशन से उत्पन्न लक्ष्मी उनकी चरण सेवा कर रही थी ।
सेवकादि फलेक्षु उनका स्तुतिगान कर रहे थे । कोमल आसान और सेवा से प्रसन्न सत्ताधीश भोगनिद्रा में मग्न थे ।
स्थान - श्रेष्ठि पदीजरा का मंत्रणा कक्ष |
समय - रात्रि का तृतीय प्रहर |
मंत्रणा गहन थी , विषय गूढ़ था | चर्चा का विषय था कि अगर दक्षिण में युवराज की पराजय होती है तो उन्हें किस प्रकार बचाया जा सके |
किस प्रकार उनकी अवश्यंभावी पराजय को विजय के रूप में परिवर्तित कर के दर्शाया जाए |
युवराज का खरमेघ यज्ञ समस्त जबूद्वीप को हार चुका था और दक्षिण में आसार कुछ ऐसे ही थे | मंत्रणाकक्ष में श्रेष्ठि पदीजरा मोदी शमन मन्त्र का अखंड जाप कर रहे थे |
विशेष रूप से महिषी गारिकसा के साथ आज मोहतरमा तदखारब के साथ महाश्रेष्ठि आलुकपूडी अपने भृत्य लहुरा-लवंक के साथ पधारे थे | जातज्ञ बीशर और वींघसा भी उपस्थित थे| आलुकपूडी अपनी आलू जैसी देहयष्टि और पूरी जैसी चिकने चुपडे समाचार निर्मित करने के लिए प्रसिद्द थे |
ये देश इसलिए है क्योंकि चच्चा गुलाबीलाल अलहाबादी थे , गुलाबीलाल न होते तो भारत नहीं होता | दरअसल भारत की खोज तो चच्चा गुलाबीलाल ने ही की थी | उससे पहले तो भारत में केवल सांप और सपेरे ही रहते थे | पर भारत खुजा हुआ नहीं था |
गुलाबीलाल को सेवक बनने का बड़ा शौक था, इसीलिए उन्होंने अपना नाम गुलाबदास रखवा लिया था | गुलाबी तबीयत के मालिक गुलाबदास की आँखें भी गुलाबी थी | जिनसे प्रभावित होकर एक शायर ने "गुलाबी आखें जो तेरी देखीं" नामक गीत लिखा |
चच्चा दरअसल बड़े सेवक थे ऐसा उनके एक वंशज पत्रकार जातपूछे ने बताया | पत्रकार जातपूछे वास्तव में प्रवक्ता थे, प्रवक्ता से कभी कभी पत्रकार का भेष धर लेते थे | भाषा की लच्छेदारी में जातपूछे का कोई जवाब नहीं था | कभी माइक लेकर सड़क पर निकल पड़ते ,कभी सड़क इनपर निकल पड़ती |
भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू |पहले तो होता नहीं, और हो जाये तो टूटता नहीं और हो के टूट जाये तो कभी जुड़ता नहीं |
जहाँ भरोसा होता है न बाबू,वहां जिंदगी बड़ी आसानी से निकल जाती है | बड़ी से बड़ी मुश्किलों के पहाड़ चूर हो जाते हैं |
......
लेकिन भरोसा ऐसी चीज़ है बाबू कि होता नहीं है, आधों को तो खुद पे नहीं होता और आधों को दूसरों पे |
उन्नीस सौ पैंतालीस में तो किसी को भरोसा था नहीं कि भारत कभी आज़ाद होगा, और जब सैतालीस में जब हो भी गया तो भी आज तक सरकारें भरोसा नहीं दिला पाईं कि तुम आजाद हो बाबू |
आजादी वैसे तो विदेशों में इलाज़ कराती रही , हवाईजहाज में जन्मदिन मानती रही , दुबई में शॉपिंग करती रही | आजादी फेमनिष्ठ होकर फेम पाने में लगी रही , लिबरल होकर लपराती रही | आज़ादी ही थी जो सेक्युलर होकर दिन रात माइक पर चीखती |
वि.सं. 2068 के लगभग एक विशाल राज्य में एक धींगा वंश का शासन था ।धींगा वंश लगभग सौ वर्षों से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राज्य संभाले था । तत्कालीन महारानी की नीति अप्रत्यक्ष रूप से शासन करने की थी ।
महारानी ने सिंहासन पर मूकेश्वर नामक दिव्य दृष्टा को बैठा रखा था । वह देखता तो सब कुछ था करता कुछ नहीं था । सभी निर्णय महारानी ही लिया करती थी । राज्य विशाल था, उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ और सभी जगह एक ही राज चलता था धींगा वंश का राज ।
एक समय की बात है राज्य के युवराज ने एक महायज्ञ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अश्वमेध यज्ञ कहते हैं । इस यज्ञ में एक घोडा छोड़ दिया जाता है और जहाँ जहाँ घोडा जाता है उसके पीछे एक सेना जाती है ।जिस राज्य में घोडा
पहुँचता है, वहां का राजा या तो घोड़े को नमन करके यज्ञ करने वाले का