धर्म संकट में है, धर्म ध्वजा धूलि-धूसरित हवा में कटी छिपकली की पूँछ की तरह फड़फड़ा रही है। लेनदारों के भय से,चेहरे पर रूमाल बाँध कर पिछवाड़े के रास्ते से घर से पलायन करने वाले भी राह चलतों को पकड़ कर दरयाफ़्त करते हैं - भई, देश का क्या होगा?
उदारीकरण के पथरप्रदर्शकों ने उधार दिया, और जम कर दिया। बाज़ार में ऐसी तरलता लाई गई कि आज भी राष्ट्र कल्लू हलवाई की तोंद की तरह थिरक रहा है। एक चकाचौंध भरी तरक़्क़ी यूँ चमकी सारे देश ने करूणानिधि वाले चश्मे चढ़ा लिए। उदारिकरण के अँधे को सब हरा ही हरा दीखता था।
जैसे मुग़ल सुल्तान गले से मोतियों की माला बेहतरीन रक्कासा की ओर ऊछालते थे, लोन उछाले गए और तत्परता से पकड़े गए। पिछली सरकार से यह स्नेह भरी भेंट प्राप्त करने वाले लोग उत्पादकता में कम विलासिता में अधिक विश्वास रखते थे।
अमीर के घर के कैलेंडर पर अल्प-वस्त्र धारिणी के वस्त्र और ग़रीब के घर के गैस सिलेंडर कम होते गए और राष्ट्र उधार की उन्नति की आनंद लहर में हिचकोले लेता गया। समय की मार देखें कि सरकार बदली और जो भारतीय संस्कृति की बात करते थे उन्होंने ही भारतीय संस्कृति की विरासत को विराम दिया।
हिंदुस्तानियत का आनंद ही उधार में है। ये कोई ४७ के बाद की बात नहीं कि नेहरू जी अपना सम्मान और इंदिराजी गेहूँ उधार में लाती रहीं। उधार, पड़ोस से माँगी हुई एक कटोरी चीनी से लेकर वित्तमंत्री के मंत्र से प्राप्त किए हुए हज़ारों करोड़ तक समाज को जोड़े रखे थी।
नरसिम्हाराव जी के राज में जब कडछुल कठौती की तली को लगा तो हम घड़ी भर को ठिठके और कुछ प्रयास किये। राव साहब निकल लिए और उनके मुँशी जी - मेरी ज़िंदगी सँवारी, मुझको गले लगा कर, बैठा दिया पलंग पर, मुझे गोद में उठा कर- के अंदाज मे तख्तनशीन हुए।
किन्तु लेनदार की बेहयाई और देनदार की शर्मिंदगी हमारी सांस्कृतिक विरासत बचाए रही। कामधेनु का दोहन चलता रहा, कल्प वृक्ष फल खो कर कलपता रहा। एक जनेऊधारी सरकार ने इस परंपरा का कर्तव्यनिष्ठा से निर्वाह किया।
ऊधार का सामंजस्य हमारी राजनीति और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। और यह आज की बात नहीं है, यह हमारे इतिहास का वो हिस्सा है जो सनातन और सल्तनत काल से समान रूप से जुड़ा रह कर गँगा-जमुनी सभ्यता की नींव रखता है।
चार्वाक ने ६०० ईसा पूर्व कहा - ऋण कृत्वा, धृतं पीवेत - अर्थात ऊधार लो और घी पीयो- हम शताब्दियों तक ऊधारी का घी पीते रहे। ग़ालिब आए तो उन्होंने कहा - क़र्ज़ की पीते थे मय और समझते थे कि हाँ, रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन। आवश्यकता घी से शराब पर पहुँची पर सिद्धांत स्थिर रहे ।
ग़रीब वोट महँगे कर के क़र्ज़ माफ़ी का प्रयास करता रहा, अमीर वोटों की खरीद के लिए धन मुहय्या करा कर क़र्ज़ चोरी की व्यवस्था करता रहा। सरकारी योजनाएँ बनती रहीं, धन के अभाव में रेंग रेंग कर दम तोड़ती रहीं। सरकार टेनिस मैच के रेफ़री की तरह लेनदारो और देनदारो के बीच का खेल देखती रही
सब कुछ बराबर परंपरागत तरीक़े से चलता रहा, कैलेंडर छपते रहे, पार्टियाँ होती रहीं। उधार लेने और देने वाले का स्नेह पिता पुत्र को स्नेह से भी ऊपर होता है। ऊधार पर टिका समाज बढ़िया चल रहा था कि सरकार ने बदल कर सामाजिक संकट खड़ा कर दिया।
नियम कड़े हुए और चौकस व्यवस्था को ठेंगा दिखा कर चौकसी निकल लिये, विजय माल्या अश्वमेध के अश्व कि भाँति जो निकले महारानी एलीजाबेथ के अस्तबल पर ही जा के रूके।
चार्वाक घी से डालडे पर आ रुके और ग़ालिब साहब को बस ठर्रे का सहारा बचा। सामाजिक तारतम्य तार तार हो गया। युवराज फटा कुर्ता पहन रहे है । पूछ रहे हैं - क्या चार्वाक को डालडा खिलाने और ग़ालिब को ठर्रा पिलाने के महापाप का उत्तर देंगे मोदीजी। युवराज का गला, जनता की आँख भर आई हैं।🙏🙏
#KisanKrantiYatra When the sweet voices @_YogendraYadav comes on TV fishing in troubled water, it is time to sift through some data on Farmers’ crisis story.
Agriculture contributes to 13.7% to the GDP of #India.
Average rate of #Farmer suicide in #India is 13 per 100,000. In Russia it is 18.2, Japan is 20.1, US is 12.6, Australia is 12.5 #KisanKrantiYatra
Farmer suicide in 2016 was 11370. This was 10% less than farming sector deaths in 2014.
सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की बेंच ने “ईन पीन सेफ़्टीपीन” के सार्वभौमिक न्यायिक सिद्धांत का पालन करते हुए प्रात:क़ालिन तात्कालिक बैठक बुलाई और अर्दली को ठँडे समोसे लाने के लिए लताड़ने के पश्चात गणेशोत्सव का प्राथमिकता से संज्ञान लेने का निर्णय लिया। #गणेश_चतुर्थी
गणपति उत्सव का पूना से संबंध को देखते हुए, न्यायाधीश महोदय ने तहसीन पूनावाला को नोटिस भेजा और उनसे जाँच कर के रिपोर्ट करने को कहा गया कि क्या गजानन के मँडपो पर मेनका जी का “नो एलीफ़ेंट वाज़ हर्ट इन मेकांग दिस पंडाल” का बोर्ड लगाया गया है।
इस बीच उन्होंने गणेश जी के गजानन बनने की विषय मे पढ़ा और अपने अर्दली राम खिलावन से कहा कि वो टैरो कार्ड खींच कर इस घटना के दोषी के बारे मे बतलाए। क्या यह शिव का दोष था या पार्वती का या स्वयं गणेश का?
छगनलाल हमारे प्रिय मित्र है। प्रिय माने वैसे जैसे मोदी के शाह, राहुल के मणिशँकर अय्यर, अमरिंदर के सिद्धु, केजरीवाल के अमानतुल्ला खान। हमारा उन पर अपार स्नेह है।
छगनलाल जी क्रांतिकारी विचारों से भरे रहते है। उनके विचार मस्तिष्क से उदर तक ऐसे भरे हैं कि यदि विचार हायड्रोजन होते तो हमारे मित्र ग़ुब्बारे बन कर गगन मे पहुँच चुके होते। मित्र अविवाहित हैं, और ऑफ़िस के सभी विवाहित मित्रों को देख कर उदास होते रहते हैं।
हमने उन्हे कई बार समझाया कि दुखी रहते हुए प्रसन्न दिखने की कला विवाहित पुरूष और मध्य वर्गीय वोटर मे प्रचुर मात्रा मे होती है और इसका उपयोग वे प्रायः कुँवारे व्यक्तियों और राजनैतिक दलो को मूर्ख बनाने मे करते है।
शरद जी रिटायर हो चुके थे। आधार का भय आधारहीन मान कर आधार बनवा चुके थे, और पेंशन प्राप्त कर के भोपाल मे जीवनयापन कर रहे थे। एक बार बिहार जा कर शरद जी नरभसा चुके थे, पुन: नरभसाने का कोई इरादा था नहीं, सो मामाजी के राज में स्वयं को सीमित कर के रखे हुए थे।
इस्लाम आज कल ख़तरे मे नही आता था, संभवत: इमर्जेंसी के बाद से, इस्लाम सबल हो चुका था, और कल निपचती जींस और लोकतंत्र के ख़तरे मे रहने का दौर चल रहा था। न्यू मार्केट के कॉफ़ी हाऊस मे चंद बुद्धिजीवी लोकतंत्र पर आए संकट पर चर्चा कर लेते थे, जोशी जी वहाँ भी नहीं जाते थे।
एक दफे वहाँ के मलियाली वेटर्स को जोशी जी के हिंदी लेखक होने का पता चल गया और उन्होंने जोशीजी को यिंदी यिम्पोजीशन के विरोध मे कॉफ़ी देने से मना कर दिया था। कहाँ शरदजी सरस्वती से ब्रह्मप्रदेश तक लिखना चाहते थे और कहाँ उन्हे बड़े तालाब के उत्तर भाग का लेखक घोषित कर दिया गया था।
ख़िलजी आस पास के रजवाड़ों के लोगों को मारा करता था। रतन सिंह चुप्पी साधे कहे कि कहीं वाशिंगटन पोस्ट उन्हे हिंदू बाईगाट ना कह दे। अखबारो मे आस पास के रजवाड़ों के बारे मे ऊल जलूल लिखा जाता रहा, रतन सिंह कमेटी पर कमेटी बिठाते रहे।
रजवाड़ों मे गोकशी को लेकर बड़ा आक्रोश था। वे उसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने रतन सिंह के पास गए। रतन सिंह देशभक्ति, भाईचारे जैसे कुछ बड़बड़ाते हुए एनडीटीवी को साक्षात्कार देने निकल गए। दूसरे दिन कुछ गोरक्षक पुजारियों की हत्या हो गई।
रजवाड़ों के बार बार परेशान करने पर रतन सिंह ने बरखा दत्त के मधुर स्वर मे धर्मनिरपेक्षता के कैसेट बनवा कर प्रजा मे बँटवाए। प्रजा पर उनके कैसेटों का अभूतपूर्व प्रभाव हुआ। किलो के भाव तलवारें गला कर कीर्तन के लिए करताल बनाए जाने लगे।
#India doesn’t need to earn my affection by being flawless and perfect. Her Every imperfection, every blemish is mine. All her failures are mine. No, I am proud of my India. Never will I question the glory of the land which gave me birth, home and love #IndependenceDayIndia
If her face carries the ugly wounds of the past, I allowed her to suffer under slavery. I failed her as a son. If there is misgovernance, I chose wrong people to rule. If there’s poverty, we must introspect on the leaders we made custodian to the nation for decades.
Every time, she stumbles, I stand apart, brush dust off my clothes and mock her. I laugh at her struggle, mocking - See, so many poor; see so much corruption, see so much dirt and garbage. The world mocks at me. When the mother is belittled, the child loses all respect.