भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू |पहले तो होता नहीं, और हो जाये तो टूटता नहीं और हो के टूट जाये तो कभी जुड़ता नहीं |
जहाँ भरोसा होता है न बाबू,वहां जिंदगी बड़ी आसानी से निकल जाती है | बड़ी से बड़ी मुश्किलों के पहाड़ चूर हो जाते हैं |
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लेकिन भरोसा ऐसी चीज़ है बाबू कि होता नहीं है, आधों को तो खुद पे नहीं होता और आधों को दूसरों पे |
उन्नीस सौ पैंतालीस में तो किसी को भरोसा था नहीं कि भारत कभी आज़ाद होगा, और जब सैतालीस में जब हो भी गया तो भी आज तक सरकारें भरोसा नहीं दिला पाईं कि तुम आजाद हो बाबू |
आजादी वैसे तो विदेशों में इलाज़ कराती रही , हवाईजहाज में जन्मदिन मानती रही , दुबई में शॉपिंग करती रही | आजादी फेमनिष्ठ होकर फेम पाने में लगी रही , लिबरल होकर लपराती रही | आज़ादी ही थी जो सेक्युलर होकर दिन रात माइक पर चीखती |
आजादी ही थी जो यादव, ठाकुर, बामन, पिछड़ा ,
अति पिछड़ा, दलित , आदिवासी , भूमिहर , तमिल, तेलगु, हिंदी , गुज्जु, बंगाली, पहाड़ी में बंट गयी |
आजादी थी तो लेकिन अपने होने का भरोसा नहीं जगा सकी , क्योंकि भरोसा बहुत बड़ी चीज़ है बाबू |
जनता ने कभी नेताओं पे भरोसा नहीं किया तो लोकसभा चुनाव में पटक दिया,
जब नेता को जनता पे भरोसा नहीं रहा तो राज्य सभा के पिछले रस्ते से संसद में बैठने की जुगाड़ कर ली | सब भरोसे का खेल है बाबू |
सब सालों से ऐसे ही काम चलाते आये और काम चलता भी रहा | लेकिन भरोसा मिसिंग था बाबू | जनता को सरकार पे भरोसा नहीं था और सरकार को जनता पे |
या ये कह लो कि उन लोग को अपनी नाकामी पे पूरा भरोसा था |
उन्होंने कभी जनता को कुछ करने नहीं दिया, और जनता ने खुद कुछ किया नहीं | उनको भरोसा ही नहीं था कि जनता कर पायेगी और जनता को भरोसा था कि ये कुछ करने नहीं देंगे | दो चार को छोड़ कर अच्छे कालेज नहीं बनाये,
क्योंकि भरोसा नहीं था, पढ़ लिख के करेंगे क्या? अच्छे अस्पताल नहीं बनाये, क्योंकि भरोसा ही नहीं था बाबू, कि जो इनके कालेजों से पढ़के निकलेंगे वो डाक्टर इलाज कर सकेंगे? उन्होंने जनता के मन में भर दिया कि जब तक आरक्षण नहीं मिलेगा तो कुछ कर नहीं पाओगे बाबू |
जबकि थोड़ा भरोसा जगाते और दिखाते तो आज आरक्षण कोई मांगता ही नहीं | बस लोगों को खुद पर भरोसा करना सिखा देते | अगर एक पीढ़ी ढंग से पढ़ा देते तो दूसरी अभी तक अपने पैर पर खड़ी होती | लेकिन फिर इनके धंधे कैसे चलते बाबू |
भरोसे का आलम तो ये था कि ढिंढोरा पीट पीट के देश के नंबर वन
बताये जाने वाले अस्पताल के डाक्टरों तक पे नहीं था | बुखार तक बहार से ठीक होकर आता था |
एक बार भरोसा दिखा था , जब एक माँ के लाल ने जनता से सीधा कहा था , मैं भी उपवास करता हूँ तुम भी करो | पूरी जनता उसके पीछे लग गयी थी | भरोसा था बाबू उस आदमी पे जनता को |
सिर्फ भरोसा दिखा कर कड़े-कड़वे-कठिन जैसे भी हों लेकिन सही कदम उठाएंगे तो जनता पीछे खड़ी दिखेगी आपके लेकिन अगर भरोसा टूट गया तो फिर जिस आखिरी छोर की बात होती है, पूरी पार्टी वहाँ खड़ी दिखेगी बाबू।
उसके बाद 4 साल पहले मोदी जी आये, पहले तो जनता का भरोसा जीत के चुनाव जीत लिया
फिर धीरे से पूछा सब्सिडी छोड़ोगे क्या ? जनता भी एकदम , भरोसे में , हाँ छोड़ देंगे , जान भी हाज़िर, बोलके छोड़ दी | भरोसा था , मोदीजी को जनता पे, कि मांगेंगे तो जनता दे देगी | और जनता को कि दे देंगे तो मोदीजी अपने घर में नहीं भरेंगे |
फिर मोदीजी बोले सफाई करो, जनता लग गयी अपना भला समझकर | लोगों के कुछ मांगे बिना घाट के घाट बिना सरकार की मदद के साफ़ कर दिए |
एक भाई तो समुद्र के तट को साफ़ करने में लगा है | और बाकी जनता अपने घर को साफ़ करने में लगी है |
पहले भी तो निर्मल भारत आया था, पर पैसा आया और ऊपर ही बंट गया, पंद्रह प्रतिशत जो बचा उसका विज्ञापन बन गया | लेकिन मोदीजी का भरोसा और समझ देखो कि इसे व्यावहार परिवर्तन से जोड़ दिया |
फिर धीरे से मोदी जी बोले , हम नोट बंद करेंगे , जनता ने कहा, कर लो बाबू , ये भी कर लो |
भरोसा बड़ी चीज़ है | मोदी जी को भरोसा था कि जनता से बोलेंगे तो जनता सहयोग करेगी | बाबू, जहाँ दंगे हो जाने थे, मार काट मच जानी थी, वहां दो महीने में सब एकदम नार्मल , भरोसा ही था |
जनता का मोदीजी पर और मोदीजी का जनता पर जो ये कर बैठे
नहीं तो बड़े बड़े हार्वर्ड के इकनॉमिस्टों का तो कलेजा फट गया था सुन के |
फिर बोले डिजिटल ट्रांसक्शन करो | जनता को करना तो आता नहीं था, लेकिन मोदीजी का भरोसा देखो, लोगों की बुद्धि विवेक पर, की बोले करो, हम देखेंगे, पैसे तो अभी हैं नहीं , छप रहे हैं, तुम करो | कर के देखो |
पिछली सरकार वाले कहते,ऐसे कैसे कर लेंगे। अनपढ़ गंवार लोग हैं।उनको अपनी विरासत पे भरोसा था कि वो क्या छोड़ के गए हैं और लोगों से उनको क्या उम्मीद थी।मोदीजी को जनता पे अलग ही टाइप का भरोसा था , बोले करो जो होगा हम देख लेंगे।कमाल देखो अनपढ़ जनता डिजिटल ट्रांसक्शन तेजी से सीख गयी |
मानो न मानो भरोसे की बात थी बाबू | मोदीजी ने जनता में भरोसा दिखाया और जनता ने भरोसा तोडा नहीं |
बैंक वालों पे भरोसा कर के लोगों के खाते खुलवा दिये, उसी ब्यूरोक्रेसी पे भरोसा दिखा के ऐसे ऐसे काम निकलवा लिए जिसकी उम्मीद नहीं थी |
ब्यूरोक्रेट भी सोचते होंगे किस से पाला पड़ा है | सोचा था ट्रांसफर कर देगा तो निकाल लेंगे छोटी पोस्ट पे कुछ साल लेकिन भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू, , जब उन्ही बाबुओं पर मोदीजी ने भरोसा दिखाया तो वो भी बेहतर काम करने लगे | अब स्कूटर, बुलेट तो बन नहीं जाएगी लेकिन फिर भी
उन्ही लोग से बेहतर काम लेना सिर्फ भरोसे की बात है बाबू |
कुछ दुर्घटनाये अक्सर होती हैं उनको रोका तो नहीं जा सकता ,लेकिन अपराधी छोड़े न जाएँ ये भी तो देखना है।मोदीजी ने भरोसा तोडा नहीं है,कान रखे हैं जनता के बीच।ऐसी सुनने और सुनकर काम करने वाली सरकार दशकों में एक बार आती है |
कुछ कमी रह भी गयी है , तो आदमी सही है, और अभी वही कंट्रोल पकडे है, भरोसा कायम रखो | आपको क्या लगता है मोदीजी अपने तीन सैकड़ा सांसदों के भरोसे कोई कदम उठाते हैं ,न बाबू,मोदीजी १३० करोड़ जनता के भरोसे कोई भी कदम उठाते हैं। जितना भरोसा उनको जनता पर है , उतनी बड़ी जिम्मेदारी भी है |
अकेले वो कितना करेंगे उनके सांसदों को भी कूदना होगा ।
भरोसा बड़ी मुश्किल से मिलता है और जनता तो भरोसे की भूखी है और नेताओं को भी भरोसा जीतने की भूख दिखानी होगी बाबू ।
वैसे तो हमारे यहाँ कई टोलियां हैं, लेकिन एक विशेष टोली है चौधरियों की । ये कुछ ख़ास लोग हैं जिनका काम लोगों के झगडे सुलझाना और विवादों को समाप्त करना है ।
इन चौधरियों की बड़ी इज्जत है ।
सत्ता किसी की भी हो पहलवानों की या लंबरदारों की या लंबरदारों के संरक्षण में पंच बने रंगा- बिल्ला की लेकिन चलती केवल चौधरियों की है।
कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में जब अंग्रेजों को लगा कि भारत के लोग तो गंवार हैं।अपने झगडे आपस में लड़ मर के सुलझा लेते हैं।
पंचायत का जो फैसला होता वह झगडे को येन केन प्रकारेण सुलझा ही देता ।
अंग्रेजों ने सोचा कि भाई ऐसे कैसे !
तब उन्होंने पहले कुछ विलायती मीलार्ड बुलवाये और उलझे झगडे सुलगाने की और सुलझे झगडे उलझाने की नई व्यवस्था लागू की ।
जब आपके आस पास 18-19 वर्ष के हँसते खेलते बच्चे को हृदयाघात से प्राण गंवाते होते देखते हैं,तब महसूस होता है कुछ गलत अवश्य है।
जब उस बच्चे की मृत्यु का समाचार सुनकर उसी की आयु का उसका मित्र दिवंगत हो जाता है तब बहुत आश्चर्य होता है।
इतनी गहन मित्रता देखने में कम आती है किन्तु इसमें एक चिंता का विषय यह है कि प्रकृति ने हमारी आने वाली पीढ़ी पर भभव डालना शुरू कर दिया है । और हमारी नई पीढ़ी में जीवन की चुनौतियों और दुःख को सहन करने की क्षमता कम होती जा रही है ।
हमारी शिक्षा व्यवस्था आत्मबल विकसित नहीं करती, परिस्थितयों का किस प्रकार सामना करना चाहिए यह भी नहीं बताती । शिक्षा व्यवस्था प्रेशर बनती है और बस एक रेस की तरह सबको उसमे दौड़ा देती है ।
मानसिक रुप से आगामी चुनौतियों के लिए बच्चों को तैयार करना शिक्षा का अंग होना चाहिए ।
मीडियारण्य में एक बार ऋषि पोलक अपने अट्ठासी हज़ार पोलस्टर शिष्यों के साथ एग्जिट-पोल नामक महायज्ञ कर रहे थे| तब एक जिज्ञासु शिष्य ने पोलक ऋषि से प्रश्न किया, हे ऋषि श्रेष्ठ -
यह पोल क्या है और यह किस प्रकार किया जाता है?
पोल के क्या भेद हैं? #ExitPolls #ExitPoll
पोल किसे करना चाहिए और पोल करने से क्या लाभ होता है?
पोल को करने की शास्त्रोक्त विधि क्या है और इसे कब किया जा सकता है?
ऋषि पोलक प्रश्न सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले - हे जिज्ञासु आपने यह उत्तम प्रश्न किया है अतः अब मैं पोल की कथा विस्तारपूर्वक कहता हूँ ।
एक बार भगवन सत्ताधीश अपने आसन पर सुखपूर्वक विराजमान थे । सरकारी तंत्र और परियोजनाओं के कमीशन से उत्पन्न लक्ष्मी उनकी चरण सेवा कर रही थी ।
सेवकादि फलेक्षु उनका स्तुतिगान कर रहे थे । कोमल आसान और सेवा से प्रसन्न सत्ताधीश भोगनिद्रा में मग्न थे ।
स्थान - श्रेष्ठि पदीजरा का मंत्रणा कक्ष |
समय - रात्रि का तृतीय प्रहर |
मंत्रणा गहन थी , विषय गूढ़ था | चर्चा का विषय था कि अगर दक्षिण में युवराज की पराजय होती है तो उन्हें किस प्रकार बचाया जा सके |
किस प्रकार उनकी अवश्यंभावी पराजय को विजय के रूप में परिवर्तित कर के दर्शाया जाए |
युवराज का खरमेघ यज्ञ समस्त जबूद्वीप को हार चुका था और दक्षिण में आसार कुछ ऐसे ही थे | मंत्रणाकक्ष में श्रेष्ठि पदीजरा मोदी शमन मन्त्र का अखंड जाप कर रहे थे |
विशेष रूप से महिषी गारिकसा के साथ आज मोहतरमा तदखारब के साथ महाश्रेष्ठि आलुकपूडी अपने भृत्य लहुरा-लवंक के साथ पधारे थे | जातज्ञ बीशर और वींघसा भी उपस्थित थे| आलुकपूडी अपनी आलू जैसी देहयष्टि और पूरी जैसी चिकने चुपडे समाचार निर्मित करने के लिए प्रसिद्द थे |
ये देश इसलिए है क्योंकि चच्चा गुलाबीलाल अलहाबादी थे , गुलाबीलाल न होते तो भारत नहीं होता | दरअसल भारत की खोज तो चच्चा गुलाबीलाल ने ही की थी | उससे पहले तो भारत में केवल सांप और सपेरे ही रहते थे | पर भारत खुजा हुआ नहीं था |
गुलाबीलाल को सेवक बनने का बड़ा शौक था, इसीलिए उन्होंने अपना नाम गुलाबदास रखवा लिया था | गुलाबी तबीयत के मालिक गुलाबदास की आँखें भी गुलाबी थी | जिनसे प्रभावित होकर एक शायर ने "गुलाबी आखें जो तेरी देखीं" नामक गीत लिखा |
चच्चा दरअसल बड़े सेवक थे ऐसा उनके एक वंशज पत्रकार जातपूछे ने बताया | पत्रकार जातपूछे वास्तव में प्रवक्ता थे, प्रवक्ता से कभी कभी पत्रकार का भेष धर लेते थे | भाषा की लच्छेदारी में जातपूछे का कोई जवाब नहीं था | कभी माइक लेकर सड़क पर निकल पड़ते ,कभी सड़क इनपर निकल पड़ती |
वि.सं. 2068 के लगभग एक विशाल राज्य में एक धींगा वंश का शासन था ।धींगा वंश लगभग सौ वर्षों से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राज्य संभाले था । तत्कालीन महारानी की नीति अप्रत्यक्ष रूप से शासन करने की थी ।
महारानी ने सिंहासन पर मूकेश्वर नामक दिव्य दृष्टा को बैठा रखा था । वह देखता तो सब कुछ था करता कुछ नहीं था । सभी निर्णय महारानी ही लिया करती थी । राज्य विशाल था, उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ और सभी जगह एक ही राज चलता था धींगा वंश का राज ।
एक समय की बात है राज्य के युवराज ने एक महायज्ञ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अश्वमेध यज्ञ कहते हैं । इस यज्ञ में एक घोडा छोड़ दिया जाता है और जहाँ जहाँ घोडा जाता है उसके पीछे एक सेना जाती है ।जिस राज्य में घोडा
पहुँचता है, वहां का राजा या तो घोड़े को नमन करके यज्ञ करने वाले का