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May 13, 2018 23 tweets 9 min read Read on X
#पोल_व्रत_कथा

मीडियारण्य में एक बार ऋषि पोलक अपने अट्ठासी हज़ार पोलस्टर शिष्यों के साथ एग्जिट-पोल नामक महायज्ञ कर रहे थे| तब एक जिज्ञासु शिष्य ने पोलक ऋषि से प्रश्न किया, हे ऋषि श्रेष्ठ -
यह पोल क्या है और यह किस प्रकार किया जाता है?
पोल के क्या भेद हैं?
#ExitPolls
#ExitPoll
पोल किसे करना चाहिए और पोल करने से क्या लाभ होता है?
पोल को करने की शास्त्रोक्त विधि क्या है और इसे कब किया जा सकता है?
ऋषि पोलक प्रश्न सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले - हे जिज्ञासु आपने यह उत्तम प्रश्न किया है अतः अब मैं पोल की कथा विस्तारपूर्वक कहता हूँ ।
एक बार भगवन सत्ताधीश अपने आसन पर सुखपूर्वक विराजमान थे । सरकारी तंत्र और परियोजनाओं के कमीशन से उत्पन्न लक्ष्मी उनकी चरण सेवा कर रही थी ।
सेवकादि फलेक्षु उनका स्तुतिगान कर रहे थे । कोमल आसान और सेवा से प्रसन्न सत्ताधीश भोगनिद्रा में मग्न थे ।

#ExitPolls
#ExitPoll
तब वहां जन प्रतिनिधि बनकर विपच्छ मुनि का आना हुआ । विपच्छ मुनि जनमानस का सन्देश लाये थे और सत्ताधीश से जनहित के अपूर्ण कार्यों एवं सत्ताधीश के दिए उत्तम वचनों को याद दिलाना चाहते थे । मुनि ने भगवन को प्रणाम किया और कहा -

#ExitPoll #ExitPolls
हे सत्तारूढ़ भगवन आपकी कीर्ति उन्तीस राज्यों और सातों केंद्र शाषित प्रदेशों में विस्तृत है ।
लोकसभा से लेकर ग्राम सभा तक आपके चरण रज से उत्पन्न आपके सेवक भी ईशतुल्य पूजनीय हो गए हैं । जनमानस में आपके प्रति अत्यंत श्रद्धा है ।
किन्तु जनमानस की कुछ समस्याएं हैं |

#ExitPolls
जिनपर आपका ध्यानाकर्षण करने मुझे यहाँ आना पड़ा है । मैं भी आपका परम भक्त ही हूँ । कृप्या मेरा वक्तव्य सुने और समाधान बताएं|
भगवन अपने नेत्र बंद किये हुए भोगनिद्रा में मग्न मुनि के वचनों को नहीं सुन पाये और चुपचाप बैठे रहे।मुनि ने पुनः प्रयास किया, राजीव नयन खोलें प्रभु !
मेरी बात सुनें ।
किन्तु भगवन फिर भी चुप रहे , तब विपच्छ मुनि अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगवान को श्राप दे दिया - आपकी कीर्ति समाप्त होगी और आप लोकसभा से ही नहीं नुक्कड़ की सभाओं से भी अपकीर्ति को प्राप्त हो जाओगे ।

इस प्रकार क्षुब्ध मन से मुनिवर प्रस्थान कर गए ।
भगवान के भोगनिद्रा से जागने के बाद उन्हें मुनि के आने का वृत्तांत सेवकों ने कह सुनाया । किन्तु तब तक विलम्ब हो चुका था ।

उचित समय आने पर भगवान पर श्राप का प्रभाव हुआ और वे सत्ता के गलियारों से विपच्छ के अंधियारों में भटक गए ।

वे अपना श्राप भोग ही रहे थे कि,

#पोल_व्रत_कथा
तब के विपच्छ मुनि जो अपने पुण्यकर्मों से अब सत्ताधीश हो गए थे, भ्रमण करते दिखे ।

तब उन्होंने पूछा हे मुनिवर, मैं श्राप का भागी बन यह दुर्दिन भोग रहा हूँ , आप किस प्रकार सत्ता
धीश के पद को विभूषित कर रहे हैं, विस्तारपूर्वक कहिये ।

विपच्छमुनि ने कहा हे भगवन ,
यह सब पोल व्रत के पुण्य स्वरुप संभव हो सका है ।
मुनि बोले अत्यंत फलदायक इस व्रत को मैंने पूर्ण श्रद्धा से किया ।अतः यह सुख भोग रहा हूँ ।
पदच्युत सत्ताधीश करबद्ध हो मुनि के चरणों में लोट गए और कहने लगे - हे मुनिवर मुझे क्षमा कर इस व्रत की महिमा कहने का कष्ट करें ।
तब मुनि ने कहा - तो लो मैं सत्ता के भोगियों के कल्याण के लिए यह वर्णन करता हूँ ।
पोल व्रत को पूरे वर्ष में कभी भी कहीं भी किया जा सकता है । किन्तु चुनाव मास में किया जाने वाला पोलव्रत अत्यंत फलदायक माना गया है ।
चुनाव की तिथि निश्चित होने से पहले किये गए पोल -
को निम्न स्तर का वर्चस्व मापक छद्म पोल कहा जाता है, इस पोल में पोलकर्ता अपने प्रति लोगों में कितनी पैठ है यह समझने का प्रयत्न करता है ।
चुनाव की तिथि घोषित होने के साथ साथ किये गए पोल, एजेंडा स्थापत्य पोल कहे गए हैं, इनका उद्देश्य चुनाव का एजेंडा स्थापित करना होता है ।
तत्पश्चात अंतिम और उत्तम पोल एग्जिट पोल को माना गया गया है।एग्जिट पोल शीघ्र परिणाम दयाक होता है, और समस्त पोलों की पोल खोलते हुए चुनाव के परिणाम का अनुमान लगाने का प्रयत्न करता है।वास्तविक सत्य तो केवल मतगणना में सामने आता है किन्तु एग्जिट पोल चुनाव की प्रक्रिया में
#पोल_व्रत_कथा
लगे हुए पूजनियों के पैरों में पड़े छालों पर मलहम लगाने का प्रयत्न करता है ।
मैंने आपसे पोल के भेद और पोल व्रत करने के मुहूर्त कहे।अब मैं पोल की विधि समझाता हूँ ।
पोल को कोई भी पत्रकार या सेलेब्रिटी अकेले या समूह में विद्वान पोलस्टरों के साथ मिलकर कर सकता है ।
पोलस्टर द्वारा अभेद्य आंकड़ो, एवं उन आंकड़ों के ग्राफ पवित्र एवं गुप्त स्थान पर बनवाये जाने चाहिए । पोलस्टर उपलब्ध न हों या आपके पास बजट न हो तो किसी भी माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल एवं ग्राफिकल डिज़ाइन में ज्ञान प्राप्त इंटर्न से यह कार्य करवाया जा सकता है ।

#ExitPolls #ExitPoll
पोलस्टर आंकड़े कैसे भी उत्पन्न कर सकता है, शास्त्रोक्त विधि जन जन से पूछकर वैज्ञानिक रूप से गणनाओं के आधार पर परिणाम दर्शाने का है । इससे वास्तविक स्थिति का अनुमान हो सकता है । किन्तु ,भीषण गर्मी, बरसात अथवा ठण्ड में जब जनसम्पर्क संभव न हो, तब उचित प्रायोजक को ढूंढकर
उसके पक्ष में आंकड़े बनाने का भी प्रचलन है ।
आंकड़ो को सत्य दर्शाने हेतु, प्रायोजक की आशा के विपरीत भी कुछ परिणाम दर्शाने चाहिए ।
किसी एक राजनैतिक पार्टी से संपर्क स्थापित कर लेवें, एवं उनसे परिणाम पक्ष में दिखाने के लिए उचित धन संग्रह कर पोल के परिणामों का संकल्प लेवें ।
हे जनता जनार्दन , आपने हमारे कार्य देखे हैं, आप सब जानते हैं , आपको मूर्ख बनाना तो संभव नहीं है किन्तु भ्रमित करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसी अधिकार की प्राप्ति हेतु हम यह पोल प्रकट कर रहे हैं ।
कृप्या इस पोल को देखें एवं हमारी प्रायोजक पार्टी के प्रति अपनी कृपा बनायें ।
फिर अपने दोनों नेत्र बंद कर भावविभोर हो बार बार दोहराये हमारे पोल के हिसाब से हमारे प्रायोजक दल सत्ता में आएगा ।
इसके पश्चात कुछ और पत्रकारों एवं स्वघोषित राजनैतिक बुद्धिजीवियों को बिठा कर जागरण एवं भजन कीर्तन करने का विधान कहा गया है ।
अंत में समस्त राजनैतिक बुद्धिजीवियों एवं पोलस्टर को यथोचित भोजन, दान दक्षिणा आदि प्रदान करना चाहिए ।
विपच्छमुनि (वर्तमान सत्ताधीश) ने ( भूतपूर्व ) सत्ताधीश से कहा हे भगवन, मैंने भी ऐसा ही एक पोल करवा कर जनता के सामने आपकी भोगनिद्रा को सबके सामने प्रदर्शित किया
#पोल_व्रत_कथा
और मैं चुनाव में विजयी होकर समस्त सुखों का भोग कर रहा हूँ । आप चाहे तो ऐसा प्रायोजन आप भी कर सकते हैं , किन्तु मैं भी कसर नहीं छोडूंगा ,क्योंकि सत्ता अब मेरी दासी है ।
दोनों ने एक दुसरे को प्रणाम कर विदा ली और पोलव्रत करने का संकल्प लिया -
#पोल_व्रत_कथा
हे पोलस्टर जैसा सुख आपने विपच्छ मुनि को दिया वैसा ही परिणाम आप सबको दें ।
ॐ ।
ऋषि पोलक ने जिज्ञासु से कहा बस यही पोल व्रत की महिमा है । आप अगर पोल करना चाहे तो मेरे अठासी हज़ार पोलस्टर में से किसी को ले जाइये सभी एक्सेल में दक्ष है । आपका मनोरथ पूर्ण करवाएंगे ।
#पोल_व्रत_कथा
जिज्ञासु ने पोलक ऋषि को दंडवत प्रणाम किया और अपने प्रयोजन हेतु सबसे सस्ता पोलस्टर चुनकर ले गए ।

#पोल_व्रत_कथा #Satire on #ExitPolls #ExitPoll #ExitPollKarnataka

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Aug 22, 2018
#चौधरियों_का_राज

वैसे तो हमारे यहाँ कई टोलियां हैं, लेकिन एक विशेष टोली है चौधरियों की । ये कुछ ख़ास लोग हैं जिनका काम लोगों के झगडे सुलझाना और विवादों को समाप्त करना है ।
इन चौधरियों की बड़ी इज्जत है ।
सत्ता किसी की भी हो पहलवानों की या लंबरदारों की या लंबरदारों के संरक्षण में पंच बने रंगा- बिल्ला की लेकिन चलती केवल चौधरियों की है।
कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में जब अंग्रेजों को लगा कि भारत के लोग तो गंवार हैं।अपने झगडे आपस में लड़ मर के सुलझा लेते हैं।
पंचायत का जो फैसला होता वह झगडे को येन केन प्रकारेण सुलझा ही देता ।
अंग्रेजों ने सोचा कि भाई ऐसे कैसे !
तब उन्होंने पहले कुछ विलायती मीलार्ड बुलवाये और उलझे झगडे सुलगाने की और सुलझे झगडे उलझाने की नई व्यवस्था लागू की ।
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Jun 15, 2018
जब आपके आस पास 18-19 वर्ष के हँसते खेलते बच्चे को हृदयाघात से प्राण गंवाते होते देखते हैं,तब महसूस होता है कुछ गलत अवश्य है।
जब उस बच्चे की मृत्यु का समाचार सुनकर उसी की आयु का उसका मित्र दिवंगत हो जाता है तब बहुत आश्चर्य होता है।
इतनी गहन मित्रता देखने में कम आती है किन्तु इसमें एक चिंता का विषय यह है कि प्रकृति ने हमारी आने वाली पीढ़ी पर भभव डालना शुरू कर दिया है । और हमारी नई पीढ़ी में जीवन की चुनौतियों और दुःख को सहन करने की क्षमता कम होती जा रही है ।
हमारी शिक्षा व्यवस्था आत्मबल विकसित नहीं करती, परिस्थितयों का किस प्रकार सामना करना चाहिए यह भी नहीं बताती । शिक्षा व्यवस्था प्रेशर बनती है और बस एक रेस की तरह सबको उसमे दौड़ा देती है ।
मानसिक रुप से आगामी चुनौतियों के लिए बच्चों को तैयार करना शिक्षा का अंग होना चाहिए ।
Read 7 tweets
May 7, 2018
स्थान - श्रेष्ठि पदीजरा का मंत्रणा कक्ष |
समय - रात्रि का तृतीय प्रहर |

मंत्रणा गहन थी , विषय गूढ़ था | चर्चा का विषय था कि अगर दक्षिण में युवराज की पराजय होती है तो उन्हें किस प्रकार बचाया जा सके |
किस प्रकार उनकी अवश्यंभावी पराजय को विजय के रूप में परिवर्तित कर के दर्शाया जाए |
युवराज का खरमेघ यज्ञ समस्त जबूद्वीप को हार चुका था और दक्षिण में आसार कुछ ऐसे ही थे | मंत्रणाकक्ष में श्रेष्ठि पदीजरा मोदी शमन मन्त्र का अखंड जाप कर रहे थे |
विशेष रूप से महिषी गारिकसा के साथ आज मोहतरमा तदखारब के साथ महाश्रेष्ठि आलुकपूडी अपने भृत्य लहुरा-लवंक के साथ पधारे थे | जातज्ञ बीशर और वींघसा भी उपस्थित थे| आलुकपूडी अपनी आलू जैसी देहयष्टि और पूरी जैसी चिकने चुपडे समाचार निर्मित करने के लिए प्रसिद्द थे |
Read 22 tweets
Apr 26, 2018
ये देश इसलिए है क्योंकि चच्चा गुलाबीलाल अलहाबादी थे , गुलाबीलाल न होते तो भारत नहीं होता | दरअसल भारत की खोज तो चच्चा गुलाबीलाल ने ही की थी | उससे पहले तो भारत में केवल सांप और सपेरे ही रहते थे | पर भारत खुजा हुआ नहीं था |
गुलाबीलाल को सेवक बनने का बड़ा शौक था, इसीलिए उन्होंने अपना नाम गुलाबदास रखवा लिया था | गुलाबी तबीयत के मालिक गुलाबदास की आँखें भी गुलाबी थी | जिनसे प्रभावित होकर एक शायर ने "गुलाबी आखें जो तेरी देखीं" नामक गीत लिखा |
चच्चा दरअसल बड़े सेवक थे ऐसा उनके एक वंशज पत्रकार जातपूछे ने बताया | पत्रकार जातपूछे वास्तव में प्रवक्ता थे, प्रवक्ता से कभी कभी पत्रकार का भेष धर लेते थे | भाषा की लच्छेदारी में जातपूछे का कोई जवाब नहीं था | कभी माइक लेकर सड़क पर निकल पड़ते ,कभी सड़क इनपर निकल पड़ती |
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Apr 24, 2018
#भरोसा_बड़ी_चीज़_है_बाबू

भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू |पहले तो होता नहीं, और हो जाये तो टूटता नहीं और हो के टूट जाये तो कभी जुड़ता नहीं |
जहाँ भरोसा होता है न बाबू,वहां जिंदगी बड़ी आसानी से निकल जाती है | बड़ी से बड़ी मुश्किलों के पहाड़ चूर हो जाते हैं |
......
लेकिन भरोसा ऐसी चीज़ है बाबू कि होता नहीं है, आधों को तो खुद पे नहीं होता और आधों को दूसरों पे | 
उन्नीस सौ पैंतालीस में तो किसी को भरोसा था नहीं कि भारत कभी आज़ाद होगा, और जब सैतालीस में जब हो भी गया तो भी आज तक सरकारें भरोसा नहीं दिला पाईं कि तुम आजाद हो बाबू |
आजादी वैसे तो विदेशों में इलाज़ कराती रही , हवाईजहाज में जन्मदिन मानती रही , दुबई में शॉपिंग करती रही | आजादी फेमनिष्ठ होकर फेम पाने में लगी रही , लिबरल होकर लपराती रही |  आज़ादी ही थी जो सेक्युलर होकर दिन रात माइक पर चीखती | 

आजादी ही थी जो यादव, ठाकुर, बामन, पिछड़ा ,
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Apr 24, 2018
धींगा वंश का राजकुमार और #शून्यभट्ट_का_षड्यंत्र

वि.सं. 2068 के लगभग एक विशाल राज्य में एक धींगा वंश का शासन था ।धींगा वंश लगभग सौ वर्षों से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राज्य संभाले था । तत्कालीन महारानी की नीति अप्रत्यक्ष रूप से शासन करने की थी ।
महारानी ने सिंहासन पर मूकेश्वर नामक दिव्य दृष्टा को बैठा रखा था । वह देखता तो सब कुछ था करता कुछ नहीं था । सभी निर्णय महारानी ही लिया करती थी । राज्य विशाल था, उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ और सभी जगह एक ही राज चलता था धींगा वंश का राज ।
एक समय की बात है राज्य के युवराज ने एक महायज्ञ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अश्वमेध यज्ञ कहते हैं । इस यज्ञ में एक घोडा छोड़ दिया जाता है और जहाँ जहाँ घोडा जाता है उसके पीछे एक सेना जाती है ।जिस राज्य में घोडा 
पहुँचता है, वहां का राजा या तो घोड़े को नमन करके यज्ञ करने वाले का
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